सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

वैवाहिक शुभ नक्षत्र विचार

वैवाहिक जीवन की शुभता को बनाये रखने के लिये यह कार्य शुभ समय में करना उतम रहता है. अन्यथा इस परिणय सूत्र की शुभता में कमी होने की संभावनाएं बनती है. कुछ समय काल विवाह के लिये विशेष रुप से शुभ समझे जाते है. इस कार्य के लिये अशुभ या वर्जित समझे जाने वाला भी समय होता है. जिस समय में यह कार्य करना सही नहीं रहता है. आईये देखे की विवाह के वर्जित काल कौन से है.:-

1. नक्षत्र सूर्य का गोचर (Transit of Sun and Nakshatra)
27 नक्षत्रों में से 10 नक्षत्रों को विवाह कार्य के लिये नहीं लिया जाता है (10 Nakshatras in the 27 Nakshatras are prohibited for marriage related acts) . इसमें आर्दा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुणी, उतराफाल्गुणी, हस्त, चित्रा, स्वाती आदि नक्षत्र आते है. इन दस नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो व सूर्य़ सिंह राशि में गुरु के नवांश में गोचर कर तो विवाह करना सही नहीं रहता है.


2. जन्म मास, जन्मतिथि जन्म नक्षत्र में विवाह (Marriage in the Birth Month, Date and Nakshatra)
इन तीनों समयावधियों में अपनी बडी सन्तान का विवाह करना सही नहीं रहता है. व जन्म नक्षत्र व जन्म नक्षत्र से दसवां नक्षत्र, 16वां नक्षत्र, 23 वां नक्षत्र का त्याग करना चाहिए (10th, 16th and 23rd Nakshatra from birth-Nakshatra).

3. शुक्र गुरु का बाल्यवृ्द्धत्व (Combustion of Jupiter and Venus)
शुक्र पूर्व दिशा में उदित होने के बाद तीन दिन तक बाल्यकाल में रहता है. इस अवधि में शुक्र अपने पूर्ण रुप से फल देने में असमर्थ नहीं होता है. इसी प्रकार जब वह पश्चिम दिशा में होता है. 10 दिन तक बाल्यकाल की अवस्था में होता है. शुक्र जब पूर्व दिशा में अस्त होता है. तो अस्त होने से पहले 15 दिन तक फल देने में असमर्थ होता है (Unable to give results before 15 days of combustion). व पश्चिम में अस्त होने से 5 दिन पूर्व तक वृ्द्धावस्था में होता है. इन सभी समयों में शुक्र की शुभता प्राप्त नहीं हो पाती है.


गुर किसी भी दिशा मे उदित या अस्त हों, दोनों ही परिस्थितियों में 15-15 दिनों के लिये बाल्यकाल में वृ्द्धावस्था में होते है.

उपरोक्त दोनों ही योगों में विवाह कार्य संपन्न करने का कार्य नहीं किया जाता है. शुक्र व गुरु दोनों शुभ है. इसके कारण वैवाहिक कार्य के लिये इनका विचार किया जाता है.

4. चन्द्र का शुभ/ अशुभ होना (Benefic/Malefic influence of Moon)
चन्द्र को अमावस्या से तीन दिन पहले व तीन दिन बाद तक बाल्य काल में होने के कारण इस समय को विवाह कार्य के लिये छोड दिया जाता है. ज्योतिष शास्त्र में यह मान्यता है की शुक्र, गुरु व चन्द्र इन में से कोई भी ग्रह बाल्यकाल (Primary age of Venus, Jupiter and Moon) में हो तो वह अपने पूर्ण फल देने की स्थिति में न होने के कारण शुभ नहीं होता है. और इस अवधि में विवाह कार्य करने पर इस कार्य की शुभता में कमी होती है.

5. तीन ज्येष्ठा विचार (Consideration of three Jyeshtha)
विवाह कार्य के लिये वर्जित समझा जाने वाला एक अन्य योग है. जिसे त्रिज्येष्ठा (Trijyeshtha) के नाम से जाना जाता है. इस योग के अनुसार सबसे बडी संतान का विवाह ज्येष्ठा मास में नहीं करना चाहिए. इस मास में उत्पन्न वर या कन्या का विवाह भी ज्येष्ठा मास में करना सही नहीं रहता है (Marriage of person born in Jyestha is not suitable in Jyestha Month). ये तीनों ज्येष्ठ मिले तो त्रिज्येष्ठा नामक योग बनता है.

इसके अतिरिक्त तीन ज्येष्ठ बडा लडका, बडी लडकी तथा ज्येष्ठा मास इन सभी का योग शुभ नहीं माना जाता है. एक ज्येष्ठा अर्थात केवल मास या केवल वर या कन्या हो तो यह अशुभ नहीं होता व इसे दोष नहीं समझा जाता है.

6. त्रिबल विचार (Consideration of Tribala)
इस विचार में गुरु कन्या की जन्म राशि से 1, 8 व 12 भावों में गोचर कर रहा हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है. गुरु कन्या की जन्म राशि से 3,6 वें राशियों में हों तो कन्या के लिये इसे हितकारी नहीं समझा जाता है. तथा 4, 10 राशियों में हों तो कन्या को विवाह के बाद दु:ख प्राप्त होने कि संभावनाएं बनती है. गुरु के अतिरिक्त सूर्य व चन्द्र का भी गोचर अवश्य देखा जाता है (consideration of transit of Sun and Moon apart from Jupiter for marriage). इन तीनों ग्रहों का गोचर में शुभ होना त्रिबल शुद्धि के नाम से जाना जाता है.

7. चन्द्र बल (Moon's strength)
चन्द्र का गोचर 4, 8 वें भाव के अतिरिक्त अन्य भावों में होने पर चन्द्र को शुभ समझा जाता है. चन्द्र जब पक्षबली, स्वराशि, उच्चगत, मित्रक्षेत्री होने पर उसे शुभ समझा जाता है (Placement of Moon in the exalted, own or in friendly sign). अर्थात इस स्थिति में चन्द्र बल का विचार नहीं किया जाता है.

8. सगे भाई बहनों का विचार (Consideration of marriage of siblings)
एक लडके से दो सगी बहनों का विवाह नहीं किया जाता है. व दो सगे भाईयों का विवाह दो सगी बहनों से नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त दो सगे भाईयों का विवाह या बहनों का विवाह एक ही मुहूर्त समय में नहीं करना चाहिए. जुडंवा भाईयों का विवाह जुडवा बहनों से नहीं करना चाहिए. परन्तु सौतेले भाईयों का विवाह एक ही लग्न समय पर किया जा सकता है. विवाह की शुभता में वृ्द्धि करने के लिये मुहूर्त की शुभता का ध्यान रखा जाता है.

9. पुत्री के बाद पुत्र का विवाह (Marriage of Son after daughter's marriage)
पुत्री का विवाह करने के 6 सूर्य मासों की अवधि के अन्दर सगे भाई का विवाह किया जाता है. लेकिन पुत्र के बाद पुत्री का विवाह 6 मास की अवधि के मध्य नहीं किया जा सकता है. ऎसा करना अशुभ समझा जाता है. यही नियम उपनयन संस्कार पर भी लागू होता है. पुत्री या पुत्र के विवाह के बाद 6 मास तक उपनयन संस्कार नहीं किया जाता है (Upnayan Sanskara). दो सगे भाईयों या बहनों का विवाह भी 6 मास से पहले नहीं किया जाता है.

10. गण्ड मूलोत्पन्न का विचार (Consideration of Gandamoola Birth)
मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाली कन्या अपने ससुर के लिये कष्टकारी समझी जाती है. आश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेने वाली कन्या को अपनी सास के लिये अशुभ माना जाता है. ज्येष्ठा मास की कन्या को जेठ के लिये अच्छा नहीं समझा जाता है. इसके अलावा विशाखा नक्षत्र में जन्म लेने पर कन्या को देवर के लिये अशुभ माना जाता है. इन सभी नक्षत्रों में जन्म लेने वाली कन्या का विवाह करने से पहले इन दोषों का निवारण किया जाता है.

शनि साढ़ेसाती पर प्रभाव

शनि के वाहन का साढ़ेसाती पर प्रभाव

उसी के अनुरुप शनि व्यक्ति को इस अवधि मे फल देते है. वाहन जानने के लिए निम्न विधि से शनि साढ़ेसाती के वाहन का निर्धारण करते हैं

शनि के वाहन निर्धारण का तरीका – 1
व्यक्ति को अपने जन्म नक्षत्र की संख्या (Number of the birth Nakshatra) और शनि के राशि बदलने की तिथि की नक्षत्र संख्या दोनो को जोड कर योगफल को नौ से भाग करना चाहिए. शेष संख्या के आधार पर शनि का वाहन निर्धारित होता है.]

शनि का वाहन जानने की एक अन्य विधि भी प्रचलन मे है. इस विधि मे निम्न विधि अपनाते हैं

शनि के वाहन निर्धारण का तरीका - 2
शनि के राशि प्रवेश करने कि तिथि संख्या+ ऩक्षत्र संख्या +वार संख्या +नाम का प्रथम अक्षर संख्या सभी को जोडकर योगफल को 9 से भाग किया जाता है. शेष संख्या शनि का वाहन बताती है. दोनो विधियो मे शेष 0 बचने पर संख्या नौ समझनी चाहिए.

  • अगर शेष संख्या 1 होने पर शनि गधे पर सवार होते है. इस स्थिति मे मेहनत के अनुसार फल मिलते है.
  • शेष सँख्या 2 होने पर शनि घोडे पर सवार होते है. और व्यक्ति को शत्रुओ पर विजय दिलाते है.
  • शेष सँख्या 3 होने पर शनि को हाथी पर सवार कहा गया है- इस अवधि मे आशा के विपरित फल मिलते है.
  • शेष सँख्या 4 होने पर शनि को भैसे पर सवार बताया गया है- ऎसा होने पर व्यक्ति को मिले जुले फल मिलते है.
  • शेष सँख्या 5 होने पर शनि सिंह पर सवार होते है. व्यक्ति अपने शत्रुओ को हराता है.
  • शेष सँख्या 6 होने पर शनि सियार पर सवार माने गये है. इस दौरान शनि अप्रिय समाचार देते है.
  • शेष सँख्या 7 होने पर शनि का वाहन कौआ कहा गया है. साढेसाती की अवधि मे कलह बढती है.
  • शेष सँख्या 8 होने पर शनि को मोर पर सवार बताया गया है. व्यक्ति को शुभ फल मिलते है.
  • शेष सँख्या 9 होने पर शनि का वाहन हँस कहा गया है. व शनि व्यक्ति को सुख देते है.
  • विशेष शेष संख्या 0 आने पर सँख्या 9 समझनी चाहिए- और शनि का वाहन हँस समझना चाहिए-

शनि साढेसाती फल या वाहन के फल
जिस व्यक्ति को शनि की साढेसाती के चरण (If both the Sadesati Phase and Vehicle are unlucky, take care) के फल अशुभ मिल रहे है- तथा शनि का वाहन भी शुभ नही है- तो इस स्थिति मे साढेसाती के दौरान व्यक्ति को विशेष रुप से सावधान रहना चाहिए- इस स्थिति मे व्यक्ति के सामने अनेक चुनोतियाँ आती है- जिनका व्यक्ति को हिम्मत के साथ सामना करना चाहिए

  • अगर किसी व्यक्ति को साढेसाती के अशुभ फल (Sadesati is malefic) मिल रहे हो तथा शनि का वाहन शुभ हो तो इस स्थिति मे साढेसाती के कष्टो मे कमी आती है और व्यक्ति को मिला जुला फल मिलता है-
  • जिस व्यक्ति के लिए शनि का वाहन शुभ हो तथा साढेसाती के चरण के फल भी शुभ हो तो इस स्थिति मे शुभता बढ जाती है- पर साढेसाती का चरण शुभ तो और वाहन का फल अशुभ आ रहा हो तो व्यक्ति को मिल&जुले फल मिलते है
  • शनि का वाहन कुछ व्यक्तियो के लिए शुभ फलकारी है- तथा कुछ के लिए अशुभ फल देने वाला होता है- प्रत्येक व्यक्ति के लिए शनि के फल अलग अलग हो सकते है-

शनि वाहन : गधा (Saturn’s Vehicle – Donkey)
व्यक्ति के लिए शनि का वाहन गधा होने पर शनि की साढेसाती मे मिलने वाले शुभ फलो मे कमी होती है. शनि के इस वाहन को शुभ नही कहा गया है. शनि की साढेसाती की अवधि मे व्यक्ति को कार्यो मे सफलता प्राप्त करने के लिए काफी प्रयास करना होता है. व्यक्ति को मेहनत के अनुरुप ही फल मिलते है. इसलिए व्यक्ति का अपने कर्तव्य का पालन करना हितकर होता है.

शनि वाहन : घोडा (Saturn’s Vehicle – Horse)
शनि का वाहन घोडा होने पर व्यक्ति को शनि की साढेसाती मे शुभ फल मिलते है. इस दौरान व्यक्ति समझदारी व अक्लमंदी से काम लेते हुए अपने शत्रुओ पर विजय हासिल करता है. व व्यक्ति अपने बुद्धिबल से अपने विरोधियों को परास्त करने मे सफल रहता है. घोडे को शक्ति का प्रतिक माना गया है इसलिए इस अवधि मे व्यक्ति के उर्जा व जोश मे बढोतरी होती है.

शनि वाहन : हाथी (Saturn’s Vehicle – Elephant)
जिस व्यक्ति के लिए शनि का वाहन हाथी होता है. उस व्यक्ति के लिए शनि के वाहन को शुभ नही कहा गया है. इस दौरान व्यक्ति को अपनी उम्मीद से हटकर फल मिलते है. इस स्थिति मे व्यक्ति को साहस व हिम्मत से काम लेना चाहिए. तथा विपरित परिस्थितियों मे भी घबराना नहीं चाहिए.

शनि वाहन : भैसा (Saturn’s Vehicle – Buffalo)
शनि का वाहन भैंसा आने पर व्यक्ति को मिले-जुले फल मिलते है. शनि की साढेसाती की अवधि मे व्यक्ति को संयम व होशियारी से काम करना चाहिए. इस सममे मे बातो को लेकर अधिर व व्याकुल होना व्यक्ति के हित मे नही होता है. व्यक्ति को इस समय मे सावधानी से काम करना चाहिए. अन्यथा कटु फलो मे वृ्द्धि होने की संभावना होती है.

शनि वाहन : सिंह (Saturn’s Vehicle – Lion)
शनि का वाहन सिँह व्यक्ति को शुभ फल देता है- सिँह वाहन होने पर व्यक्ति क समझदारी व चतुराई से काम लेना चाहिए- ऎसा करने से व्यक्ति अपने शत्रुओ पर विजय प्राप्त करने मे सफल होता है- अत इस अवधि मे व्यक्ति को अपने विरोधियोँ से घबराने की जरुरत नही होती है-

शनि वाहन : सियार (Saturn’s Vehicle – Jackal)
शनि की साढेसाती के आरम्भ होने पर शनि का वाहन सियार होने पर व्यक्ति को मिलने वाले फल शुभ नही होते है- इस स्थिति मे व्यक्ति को साहस व हिम्मत से काम लेना चाहिए- क्योकि इस दौरान व्यक्ति को अशुभ सूचनाएं अधिक मिलने की संभावनाएं बनती है

शनि वाहन : कौआ (Saturn’s Vehicle – Crow)
व्यक्ति के लिए शनि का वाहन कौआ होने पर उसे शान्ति व सँयम से काम लेना चाहिए- परिवार मे किसी मुद्दे को लेकर विवाद व कलह की स्थिति को टालने का प्रयास करना चाहिए- ज्यादा से ज्यादा बातचित कर बात को बढने से रोकने की कोशिश करनी चाहिए- इससे कष्टो मे कमी होती है

नि वाहन : मोर (Saturn’s Vehicle – Peacock)
शनि का वाहन मोर व्यक्ति को शुभ फल देता है- इस समय मे व्यक्ति को अपनी मेहनत के साथ&साथ भाग्य का साथ भी मिलता है- शनि की साढेसाती की अवधि मे व्यक्ति अपनी होशियारी व समझदारी से परेशानियों को कम करने मे सफल होता है- इस दौरान व्यक्ति मेहनत से अपनी आर्थिक स्थिति को भी सुधार पाता है-

शनि वाहन : हंस (Saturn’s Vehicle – Swan)
जिस व्यक्ति के लिए शनि का वाहन हँस होता है उनके लिए शनि की साढेसाती की अवधि बहुत शुभ होती है- इस मे व्यक्ति बुद्धिमानी व मेहनत से काम करके भाग्य का सहयोग पाने मे सफल होता है- यह वाहन व्यक्ति के आर्थिक लाभ व सुखो को बढाता है- शनि के सभी वाहनो मे इस वाहन को सबसे अधिक अच्छा कहा गया है-

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

Shani Sadhesati Remedies

Everybody knows that we need power, stamina and wisdom to achieve success in everything that we do in our lives. It’s impossible to even think about the success if these three factors are not there. These factors i.e. power, stamina and wisdom are ruled by Venus, Mars and Jupiter respectively. But do you know that success can still be a far off thing even if these three factors are present? The reason is fate, luck. If luck is not on your side, even these three factors coming together are of not much use. Lord Krishna gave this world the philosophy of Karma and was himself a big believer in Karma. In the 18th chapter of Gita, he has explained in detail the importance of power, stamina and wisdom along with luck. In shloka 14, Krishna says:

अधिष्ठानं तथा कत्र्ताकरण् य पृथ्वीवधम्।
विविधाक्ष पृथ्वयेष्ठा दैव-दैव यैवात पंयमम्।।

Meaning that among these three supreme powers, most important is luck. And it is ruled by Lord Shani. This is why Shani is known as ‘God of fate’. Here we will know more about this supremely powerful Shani.

Shani Dev is responsible for giving results based on man’s karma. He works as an impartial judge. He holds no grudge against anybody but has no love for anyone either. People who don’t know much about all these things should simply know that Shanidev makes no differentiation while delivering justice. He punishes without any inhibition and even his rewards are unexpected- he will give more than what one would have hoped for. This is the reason that during Sadhe Sati, some people succeed so much that it bewilders even them. The feared sadhe sati makes somebody touch the pinnacle while for some others, it’s vice-versa- they come down from their much-vaunted position. This is how Shanidev functions.
Shani Mahamantra:

ॐ नीलाजंन समाभासं रवि पुत्रं यमाग्रजम्।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।

Among nine planets, Saturn is ranked as sewak - the service giver. Shani is also known as ‘Sorrow of Kalpurush’. No one in this universe can escape him, better to say there is no one on this earth who does not fear him. We get to know about the upcoming happiness by looking at Venus’s position in the birth chart, and to know about the difficulties, the distress, position of Shani tells us everything. He lives for two and half years in every zodiac sign and rules west direction. In astrology, he is considered neuter. He is an air-based planet as well. Venus and Mercury are his friends among the other planets while Shani is at loggerheads with Sun, Moon and Mars. Jupiter is his Sam graha.

Shani is very slow moving. He derives his name from Sanskrit word shanaih-shanaih, which means slowly. He stays for two and half years in every zodiac sign and as we all know, there are twelve signs. Therefore, it takes thirty years for Shani to go round all these houses.

Sade Sati

With the advent of 12th Saturn from birth sign, Sadhe sati starts. This is the first stage. Shani stays here for two and half years and then changes sign. It reaches the first house of birth sign which is the second stage of sadhe sati. Again after two and half years, it changes sign which is the third and final stage and the sadhe sati ends. In other words, when Shani travels from twelfth to first and then to second house from the birth sign, it takes him about seven and half years and it is known as Sadhe sati of Shani.

Coming to twelfth house from Aries, Pisces, Aries and Taurus are said to be the first, second and third stages of sadhe sati. In this sequence, signs are counted as Taurus, Gemini, Cancer, Leo, Virgo, Libra, Scorpio, Sagittarius, Capricorn, Aquarius and Pisces.

When lord of fourth or eighth Shani comes under the birth sign comes, it is known as Laghu Kalyani or Dairuya. It is also thought of as equivalent to sadhe sati. Scholars consider Shani as harbinger of grief. It really puts you under a lot of distress initially but as with the Gold, which gets its luster after burning in fire, Shani also takes you into happier days.

It is Moon which rules our hearts. In the above mentioned positions of Shani, he directly affects our hearts. We undergo a lot of duress. Generally, it is believed that if sadhe sati comes with other planets also not in favorable positions, it gives more problems. On the other hand, if other planets are favorably placed, sadhe sati is less problematic. Moon placed in second, sixth, eighth or expenditure-related signs, Shani’s affects are more joy. Moon in seventh sign during sadhe sati is problematic as well.

In one round spanning thirty years, twelve years are dedicated to sadhe sati and dhaiya, which can never be counted as pleasant periods in life. In houses 3-6-8-12 from Moon, Shani gives good results or if it’s in trine houses it’s called benefic, and called directionally powerful if it’s in seventh house, or if it signifies tenth house, Saturn is believed to bestow the native with good results in these houses.

According to Phal Deepika’s author Mantreshwar, when shani is the birth sign, it brings loss of money and unnecessary anger, leading to diseases. Varah Mihir opines that in such a scenario, poisoning or fire accidents can be expected. Close and dear ones would leave you and you would have no choice but to wander around. Sources of income dry up and even your wife and kids would leave you alone. Life loses its direction, becomes meaningless.

Sadhe sati moves around our body differently at its different stages. Its movement is as below…

1.
At its first stage when it is moving from Moon to twelth bhava, it is either at head or eyes.
2.
At its second stage, when it is in the birth sign, Shani is at heart, bringing a lot of worries, tension and fears.
3.
At its third stage, when it is in second bhava from birth sign, it moves with our legs.

Measures to get rid of sadhe sati

1.
Reading Sundar Kand
2.
Reading Hanuman Chalisa
3.
Mahamrityunjaya, shani strot, shani mantra
4.
Giving coconut and peanuts in temples
5.
Giving away things like sesame, oil, blanket or articles made of iron
6.
Avoid non vegetarian food
7.
Feeding lentil to fishes
8.
Put a ring in the middle finger made of horse’s naal or a boat’s nail.
9.
Take a Peepal leaf. Put vermillion, sesame over it. Light a diya of mustard oil and place them under a Peepal tree before sun rise. Do the same for seven consecutive Saturdays.
10.
Keep a square-shaped silver piece in your pocket
11.
Give food to black dogs
12.
Wear a silver ring in the left hand.

Give food to hungry people near a temple. If you are rich enough, give food in lieu of each family member to different people. Read Shani Chalisa as many times as you can. Give your own old clothes to poor and pray that his/her good wishes lessen your problems.

Cook things made of lentil, sesame, sugar and offer it first to Shani Dev and then to Cow, Crow and dogs. Eat it as Prasad yourself and distribute among family members as well.

Donation: Donate things which Shani likes, like Lentil, Sesame, oil, iron-made articles, salt, coins, black clothes, blanket, shoes, umbrella etc. and do it in the numerals of 8- meaning 8 kg, 8 liter etc.

To keep Shani Dev happy, let a lamp of mustard oil alighted all through the day in your house.

Lal Kitab Remedies

लाल किताब का मानना है जो घर सोया (Lal Kitab Sleepy Planets) होता है उस घ्रर से सम्बन्धित फल तब तक प्राप्त नहीं होता है जबतक कि वह घर जागता नहीं है. लाल किताब में सोये हुए घरों को जगाने के लिए कई उपाय (Lal Kitab Remedies) बताए गये हैं.

जिन लोगों की कुण्डली में प्रथम भाव सोया हुआ हो उन्हें इस घर को जगाने के लिए मंगल का उपाय करना चाहिए. मंगल का उपाय करने के लिए मंगलवार का व्रत करना चाहिए. मंगलवार के दिन हनुमान जी को लडुडुओं का प्रसाद चढ़ाकर बांटना चाहिए. मूंगा धारण करने से भी प्रथम भाव जागता है.

अगर दूसरा घर सोया हुआ हो तो चन्द्रमा का उपाय शुभ फल प्रदान करता है. चन्द्र के उपाय के लिए चांदी धारण करना चाहिए. माता की सेवा करनी चाहिए एवं उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए. मोती धारण करने से भी लाभ मिलता है.

तीसरे घर को जगाने के लिए बुध का उपाय करना लाभ देता है. बुध के उपाय हेतु दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए. बुधवार के दिन गाय को चारा देना चाहिए.

लाल किताब के अनुसार किसी व्यक्ति की कुण्डली में अगर चौथा घर सोया हुआ है तो चन्द्र का उपाय करना लाभदायी होता है.

पांचवें घर को जागृत करने के लिए सूर्य का उपाय करना फायदेमंद होता है. नियमित आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ एवं रविवार के दिन लाल भूरी चीटियों को आटा, गुड़ देने से सूर्य की कृपा प्राप्त होती है.

छठे घर को जगाने के लिए राहु का उपाय करना चाहिए. जन्मदिन से आठवां महीना शुरू होने पर पांच महीनों तक बादाम मन्दिर में चढ़ाना चाहिए, जितना बादाम मन्दिर में चढाएं उतना वापस घर में लाकर सुरक्षित रख दें. घर के दरवाजा दक्षिण में नहीं रखना चाहिए. इन उपायों से छठा घर जागता है क्योंकि यह राहु का उपाय है.

सोये हुए सातवें घर के लिए शुक्र को जगाना होता है. शुक्र को जगाने के लिए आचरण की शुद्धि सबसे आवश्यक है.

सोये हुए आठवें घर के लिए चन्द्रमा का उपाय शुभ फलदायी होता है.

जिनकी कुण्डली में नवम भाव सोया हो उनहें गुरूवार के दिन पीलावस्त्र धारण करना चाहिए. सोना धारण करना चाहिए व माथे पर हल्दी अथवा केशर का तिलक करना चाहिए. इन उपाय से गुरू प्रबल होता है और नवम भाव जागता है.

दशम भाव को जागृत करने हेतु शनिदेव का उपाय करना चाहिए.

एकादश भाव के लिए भी गुरू का उपाय लाभकारी होता है.

अगर बारहवां घ्रर सोया हुआ हो तो घर मे कुत्ता पालना चाहिए. पत्नी के भाई की सहायता करनी चाहिए. मूली रात को सिरहाने रखकर सोना चाहिए और सुबह मंदिर मे दान करना चाहिए..

शनि साढेसाती के तीन चरण


शनि साढेसाती (Shani Sade Sati) में शनि तीन राशियों पर गोचर करते है. तीन राशियों पर शनि के गोचर को साढेसाती (Shani Sade Sati) के तीन चरण के नाम से भी जाना जाता है. अलग- अलग राशियों के लिये शनि के ये तीन चरण अलग - अलग फल देते है. शनि कि साढेसाती के नाम से ही लोग भयभीत रहते है.

जिस व्यक्ति को यह मालूम हो जाये की उसकी शनि की साढेसाती चल रही है, वह सुनकर ही व्यक्ति मानसिक दबाव में आ जाता है. आने वाले समय में होने वाली घटनाओं को लेकर तरह-तरह के विचार उसके मन में आने लगते है.

शनि की साढेसाती को लेकर जिस प्रकार के भ्रम देखे जाते है. वास्तव में साढेसाती का रुप वैसा बिल्कुल नहीं है. आईये शनि के चरणों को समझने का प्रयास करते है-

साढेसाती चरण-फल विभिन्न राशियों के लिये
साढेसाती का प्रथम चरण (first step of Shani Sade Sati) - वृ्षभ, सिंह, धनु राशियों के लिये कष्टकारी होता है. द्वितीय चरण या मध्य चरण- मेष, कर्क, सिंह, वृ्श्चिक, मकर राशियों के लिये अनुकुल नहीं माना जाता है. व अन्तिम चरण- मिथुन, कर्क, तुला, वृ्श्चिक, मीन राशि के लिये कष्टकारी माना जाता है.

इसके अतिरिक्त तीनों चरणों के लिये शनि की साढेसाती निम्न रुप से प्रभाव डाल सकती है-

प्रथम चरण First Step of Shani Sade Sati
इस चरणावधि में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है. आय की तुलना में व्यय अधिक होते है. विचारें गये कार्य बिना बाधाओं के पूरे नहीं होते है. धन विषयों के कारण अनेक योजनाएं आरम्भ नहीं हो पाती है. अचानक से धन हानि होती है. व्यक्ति को निद्रा में कमी का रोग हो सकता है. स्वास्थय में कमी के योग भी बनते है. विदेश भ्रमण के कार्यक्रम बनकर -बिगडते रह्ते है. यह अवधि व्यक्ति की दादी के लिये विशेष कष्टकारी सिद्ध होती है. मानसिक चिन्ताओं में वृ्द्धि होना सामान्य बात हो जाती है. दांम्पय जीवन में बहुत से कठिनाई आती है. मेहनत के अनुसार लाभ नहीं मिल पाते है.

द्वितीय चरण Second Step of Shani Sade Sati
व्यक्ति को शनि साढेसाती की इस अवधि में पारिवारिक तथा व्यवसायिक जीवन में अनेक उतार-चढाव आते है. उसे संबन्धियों से भी कष्ट होते है. व्यक्ति को अपने संबन्धियों से कष्ट प्राप्त होते है. उसे लम्बी यात्राओं पर जाना पड सकता है. घर -परिवार से दूर रहना पड सकता है. व्यक्ति के रोगों में वृ्द्धि हो सकती है. संपति से संम्बन्धित मामले परेशान कर सकते है.

मित्रों का सहयोग समय पर नहीं मिल पाता है. कार्यो के बार-बार बाधित होने के कारण व्यक्ति के मन में निराशा के भाव आते है. कार्यो को पूर्ण करने के लिये सामान्य से अधिक प्रयास करने पडते है. आर्थिक परेशानियां भी बनी रह सकती है.

तीसरा चरण third Step of Shani Sade Sati
शनि साढेसाती के तीसरे चरण में व्यक्ति के भौतिक सुखों में कमी होती है. उसके अधिकारों में कमी होती है. आय की तुलना में व्यय अधिक होते है. स्वास्थय संबन्धी परेशानियां आती है. परिवार में शुभ कार्यो बाधित होकर पूरे होते है. वाद-विवाद के योग बनते है. संतान से विचारों में मतभेद उत्पन्न होते है. संक्षेप में यह अवधि व्यक्ति के लिये कल्याण कारी नहीं रह्ती है. जिस व्यक्ति की जन्म राशि पर शनि की साढेसाती का तीसरा चरण चल रहा हों, उस व्यक्ति को वाद-विवादों से बचके रहना चाहिए.