सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

वैवाहिक शुभ नक्षत्र विचार

वैवाहिक जीवन की शुभता को बनाये रखने के लिये यह कार्य शुभ समय में करना उतम रहता है. अन्यथा इस परिणय सूत्र की शुभता में कमी होने की संभावनाएं बनती है. कुछ समय काल विवाह के लिये विशेष रुप से शुभ समझे जाते है. इस कार्य के लिये अशुभ या वर्जित समझे जाने वाला भी समय होता है. जिस समय में यह कार्य करना सही नहीं रहता है. आईये देखे की विवाह के वर्जित काल कौन से है.:-

1. नक्षत्र सूर्य का गोचर (Transit of Sun and Nakshatra)
27 नक्षत्रों में से 10 नक्षत्रों को विवाह कार्य के लिये नहीं लिया जाता है (10 Nakshatras in the 27 Nakshatras are prohibited for marriage related acts) . इसमें आर्दा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुणी, उतराफाल्गुणी, हस्त, चित्रा, स्वाती आदि नक्षत्र आते है. इन दस नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो व सूर्य़ सिंह राशि में गुरु के नवांश में गोचर कर तो विवाह करना सही नहीं रहता है.


2. जन्म मास, जन्मतिथि जन्म नक्षत्र में विवाह (Marriage in the Birth Month, Date and Nakshatra)
इन तीनों समयावधियों में अपनी बडी सन्तान का विवाह करना सही नहीं रहता है. व जन्म नक्षत्र व जन्म नक्षत्र से दसवां नक्षत्र, 16वां नक्षत्र, 23 वां नक्षत्र का त्याग करना चाहिए (10th, 16th and 23rd Nakshatra from birth-Nakshatra).

3. शुक्र गुरु का बाल्यवृ्द्धत्व (Combustion of Jupiter and Venus)
शुक्र पूर्व दिशा में उदित होने के बाद तीन दिन तक बाल्यकाल में रहता है. इस अवधि में शुक्र अपने पूर्ण रुप से फल देने में असमर्थ नहीं होता है. इसी प्रकार जब वह पश्चिम दिशा में होता है. 10 दिन तक बाल्यकाल की अवस्था में होता है. शुक्र जब पूर्व दिशा में अस्त होता है. तो अस्त होने से पहले 15 दिन तक फल देने में असमर्थ होता है (Unable to give results before 15 days of combustion). व पश्चिम में अस्त होने से 5 दिन पूर्व तक वृ्द्धावस्था में होता है. इन सभी समयों में शुक्र की शुभता प्राप्त नहीं हो पाती है.


गुर किसी भी दिशा मे उदित या अस्त हों, दोनों ही परिस्थितियों में 15-15 दिनों के लिये बाल्यकाल में वृ्द्धावस्था में होते है.

उपरोक्त दोनों ही योगों में विवाह कार्य संपन्न करने का कार्य नहीं किया जाता है. शुक्र व गुरु दोनों शुभ है. इसके कारण वैवाहिक कार्य के लिये इनका विचार किया जाता है.

4. चन्द्र का शुभ/ अशुभ होना (Benefic/Malefic influence of Moon)
चन्द्र को अमावस्या से तीन दिन पहले व तीन दिन बाद तक बाल्य काल में होने के कारण इस समय को विवाह कार्य के लिये छोड दिया जाता है. ज्योतिष शास्त्र में यह मान्यता है की शुक्र, गुरु व चन्द्र इन में से कोई भी ग्रह बाल्यकाल (Primary age of Venus, Jupiter and Moon) में हो तो वह अपने पूर्ण फल देने की स्थिति में न होने के कारण शुभ नहीं होता है. और इस अवधि में विवाह कार्य करने पर इस कार्य की शुभता में कमी होती है.

5. तीन ज्येष्ठा विचार (Consideration of three Jyeshtha)
विवाह कार्य के लिये वर्जित समझा जाने वाला एक अन्य योग है. जिसे त्रिज्येष्ठा (Trijyeshtha) के नाम से जाना जाता है. इस योग के अनुसार सबसे बडी संतान का विवाह ज्येष्ठा मास में नहीं करना चाहिए. इस मास में उत्पन्न वर या कन्या का विवाह भी ज्येष्ठा मास में करना सही नहीं रहता है (Marriage of person born in Jyestha is not suitable in Jyestha Month). ये तीनों ज्येष्ठ मिले तो त्रिज्येष्ठा नामक योग बनता है.

इसके अतिरिक्त तीन ज्येष्ठ बडा लडका, बडी लडकी तथा ज्येष्ठा मास इन सभी का योग शुभ नहीं माना जाता है. एक ज्येष्ठा अर्थात केवल मास या केवल वर या कन्या हो तो यह अशुभ नहीं होता व इसे दोष नहीं समझा जाता है.

6. त्रिबल विचार (Consideration of Tribala)
इस विचार में गुरु कन्या की जन्म राशि से 1, 8 व 12 भावों में गोचर कर रहा हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है. गुरु कन्या की जन्म राशि से 3,6 वें राशियों में हों तो कन्या के लिये इसे हितकारी नहीं समझा जाता है. तथा 4, 10 राशियों में हों तो कन्या को विवाह के बाद दु:ख प्राप्त होने कि संभावनाएं बनती है. गुरु के अतिरिक्त सूर्य व चन्द्र का भी गोचर अवश्य देखा जाता है (consideration of transit of Sun and Moon apart from Jupiter for marriage). इन तीनों ग्रहों का गोचर में शुभ होना त्रिबल शुद्धि के नाम से जाना जाता है.

7. चन्द्र बल (Moon's strength)
चन्द्र का गोचर 4, 8 वें भाव के अतिरिक्त अन्य भावों में होने पर चन्द्र को शुभ समझा जाता है. चन्द्र जब पक्षबली, स्वराशि, उच्चगत, मित्रक्षेत्री होने पर उसे शुभ समझा जाता है (Placement of Moon in the exalted, own or in friendly sign). अर्थात इस स्थिति में चन्द्र बल का विचार नहीं किया जाता है.

8. सगे भाई बहनों का विचार (Consideration of marriage of siblings)
एक लडके से दो सगी बहनों का विवाह नहीं किया जाता है. व दो सगे भाईयों का विवाह दो सगी बहनों से नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त दो सगे भाईयों का विवाह या बहनों का विवाह एक ही मुहूर्त समय में नहीं करना चाहिए. जुडंवा भाईयों का विवाह जुडवा बहनों से नहीं करना चाहिए. परन्तु सौतेले भाईयों का विवाह एक ही लग्न समय पर किया जा सकता है. विवाह की शुभता में वृ्द्धि करने के लिये मुहूर्त की शुभता का ध्यान रखा जाता है.

9. पुत्री के बाद पुत्र का विवाह (Marriage of Son after daughter's marriage)
पुत्री का विवाह करने के 6 सूर्य मासों की अवधि के अन्दर सगे भाई का विवाह किया जाता है. लेकिन पुत्र के बाद पुत्री का विवाह 6 मास की अवधि के मध्य नहीं किया जा सकता है. ऎसा करना अशुभ समझा जाता है. यही नियम उपनयन संस्कार पर भी लागू होता है. पुत्री या पुत्र के विवाह के बाद 6 मास तक उपनयन संस्कार नहीं किया जाता है (Upnayan Sanskara). दो सगे भाईयों या बहनों का विवाह भी 6 मास से पहले नहीं किया जाता है.

10. गण्ड मूलोत्पन्न का विचार (Consideration of Gandamoola Birth)
मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाली कन्या अपने ससुर के लिये कष्टकारी समझी जाती है. आश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेने वाली कन्या को अपनी सास के लिये अशुभ माना जाता है. ज्येष्ठा मास की कन्या को जेठ के लिये अच्छा नहीं समझा जाता है. इसके अलावा विशाखा नक्षत्र में जन्म लेने पर कन्या को देवर के लिये अशुभ माना जाता है. इन सभी नक्षत्रों में जन्म लेने वाली कन्या का विवाह करने से पहले इन दोषों का निवारण किया जाता है.

शनि साढ़ेसाती पर प्रभाव

शनि के वाहन का साढ़ेसाती पर प्रभाव

उसी के अनुरुप शनि व्यक्ति को इस अवधि मे फल देते है. वाहन जानने के लिए निम्न विधि से शनि साढ़ेसाती के वाहन का निर्धारण करते हैं

शनि के वाहन निर्धारण का तरीका – 1
व्यक्ति को अपने जन्म नक्षत्र की संख्या (Number of the birth Nakshatra) और शनि के राशि बदलने की तिथि की नक्षत्र संख्या दोनो को जोड कर योगफल को नौ से भाग करना चाहिए. शेष संख्या के आधार पर शनि का वाहन निर्धारित होता है.]

शनि का वाहन जानने की एक अन्य विधि भी प्रचलन मे है. इस विधि मे निम्न विधि अपनाते हैं

शनि के वाहन निर्धारण का तरीका - 2
शनि के राशि प्रवेश करने कि तिथि संख्या+ ऩक्षत्र संख्या +वार संख्या +नाम का प्रथम अक्षर संख्या सभी को जोडकर योगफल को 9 से भाग किया जाता है. शेष संख्या शनि का वाहन बताती है. दोनो विधियो मे शेष 0 बचने पर संख्या नौ समझनी चाहिए.

  • अगर शेष संख्या 1 होने पर शनि गधे पर सवार होते है. इस स्थिति मे मेहनत के अनुसार फल मिलते है.
  • शेष सँख्या 2 होने पर शनि घोडे पर सवार होते है. और व्यक्ति को शत्रुओ पर विजय दिलाते है.
  • शेष सँख्या 3 होने पर शनि को हाथी पर सवार कहा गया है- इस अवधि मे आशा के विपरित फल मिलते है.
  • शेष सँख्या 4 होने पर शनि को भैसे पर सवार बताया गया है- ऎसा होने पर व्यक्ति को मिले जुले फल मिलते है.
  • शेष सँख्या 5 होने पर शनि सिंह पर सवार होते है. व्यक्ति अपने शत्रुओ को हराता है.
  • शेष सँख्या 6 होने पर शनि सियार पर सवार माने गये है. इस दौरान शनि अप्रिय समाचार देते है.
  • शेष सँख्या 7 होने पर शनि का वाहन कौआ कहा गया है. साढेसाती की अवधि मे कलह बढती है.
  • शेष सँख्या 8 होने पर शनि को मोर पर सवार बताया गया है. व्यक्ति को शुभ फल मिलते है.
  • शेष सँख्या 9 होने पर शनि का वाहन हँस कहा गया है. व शनि व्यक्ति को सुख देते है.
  • विशेष शेष संख्या 0 आने पर सँख्या 9 समझनी चाहिए- और शनि का वाहन हँस समझना चाहिए-

शनि साढेसाती फल या वाहन के फल
जिस व्यक्ति को शनि की साढेसाती के चरण (If both the Sadesati Phase and Vehicle are unlucky, take care) के फल अशुभ मिल रहे है- तथा शनि का वाहन भी शुभ नही है- तो इस स्थिति मे साढेसाती के दौरान व्यक्ति को विशेष रुप से सावधान रहना चाहिए- इस स्थिति मे व्यक्ति के सामने अनेक चुनोतियाँ आती है- जिनका व्यक्ति को हिम्मत के साथ सामना करना चाहिए

  • अगर किसी व्यक्ति को साढेसाती के अशुभ फल (Sadesati is malefic) मिल रहे हो तथा शनि का वाहन शुभ हो तो इस स्थिति मे साढेसाती के कष्टो मे कमी आती है और व्यक्ति को मिला जुला फल मिलता है-
  • जिस व्यक्ति के लिए शनि का वाहन शुभ हो तथा साढेसाती के चरण के फल भी शुभ हो तो इस स्थिति मे शुभता बढ जाती है- पर साढेसाती का चरण शुभ तो और वाहन का फल अशुभ आ रहा हो तो व्यक्ति को मिल&जुले फल मिलते है
  • शनि का वाहन कुछ व्यक्तियो के लिए शुभ फलकारी है- तथा कुछ के लिए अशुभ फल देने वाला होता है- प्रत्येक व्यक्ति के लिए शनि के फल अलग अलग हो सकते है-

शनि वाहन : गधा (Saturn’s Vehicle – Donkey)
व्यक्ति के लिए शनि का वाहन गधा होने पर शनि की साढेसाती मे मिलने वाले शुभ फलो मे कमी होती है. शनि के इस वाहन को शुभ नही कहा गया है. शनि की साढेसाती की अवधि मे व्यक्ति को कार्यो मे सफलता प्राप्त करने के लिए काफी प्रयास करना होता है. व्यक्ति को मेहनत के अनुरुप ही फल मिलते है. इसलिए व्यक्ति का अपने कर्तव्य का पालन करना हितकर होता है.

शनि वाहन : घोडा (Saturn’s Vehicle – Horse)
शनि का वाहन घोडा होने पर व्यक्ति को शनि की साढेसाती मे शुभ फल मिलते है. इस दौरान व्यक्ति समझदारी व अक्लमंदी से काम लेते हुए अपने शत्रुओ पर विजय हासिल करता है. व व्यक्ति अपने बुद्धिबल से अपने विरोधियों को परास्त करने मे सफल रहता है. घोडे को शक्ति का प्रतिक माना गया है इसलिए इस अवधि मे व्यक्ति के उर्जा व जोश मे बढोतरी होती है.

शनि वाहन : हाथी (Saturn’s Vehicle – Elephant)
जिस व्यक्ति के लिए शनि का वाहन हाथी होता है. उस व्यक्ति के लिए शनि के वाहन को शुभ नही कहा गया है. इस दौरान व्यक्ति को अपनी उम्मीद से हटकर फल मिलते है. इस स्थिति मे व्यक्ति को साहस व हिम्मत से काम लेना चाहिए. तथा विपरित परिस्थितियों मे भी घबराना नहीं चाहिए.

शनि वाहन : भैसा (Saturn’s Vehicle – Buffalo)
शनि का वाहन भैंसा आने पर व्यक्ति को मिले-जुले फल मिलते है. शनि की साढेसाती की अवधि मे व्यक्ति को संयम व होशियारी से काम करना चाहिए. इस सममे मे बातो को लेकर अधिर व व्याकुल होना व्यक्ति के हित मे नही होता है. व्यक्ति को इस समय मे सावधानी से काम करना चाहिए. अन्यथा कटु फलो मे वृ्द्धि होने की संभावना होती है.

शनि वाहन : सिंह (Saturn’s Vehicle – Lion)
शनि का वाहन सिँह व्यक्ति को शुभ फल देता है- सिँह वाहन होने पर व्यक्ति क समझदारी व चतुराई से काम लेना चाहिए- ऎसा करने से व्यक्ति अपने शत्रुओ पर विजय प्राप्त करने मे सफल होता है- अत इस अवधि मे व्यक्ति को अपने विरोधियोँ से घबराने की जरुरत नही होती है-

शनि वाहन : सियार (Saturn’s Vehicle – Jackal)
शनि की साढेसाती के आरम्भ होने पर शनि का वाहन सियार होने पर व्यक्ति को मिलने वाले फल शुभ नही होते है- इस स्थिति मे व्यक्ति को साहस व हिम्मत से काम लेना चाहिए- क्योकि इस दौरान व्यक्ति को अशुभ सूचनाएं अधिक मिलने की संभावनाएं बनती है

शनि वाहन : कौआ (Saturn’s Vehicle – Crow)
व्यक्ति के लिए शनि का वाहन कौआ होने पर उसे शान्ति व सँयम से काम लेना चाहिए- परिवार मे किसी मुद्दे को लेकर विवाद व कलह की स्थिति को टालने का प्रयास करना चाहिए- ज्यादा से ज्यादा बातचित कर बात को बढने से रोकने की कोशिश करनी चाहिए- इससे कष्टो मे कमी होती है

नि वाहन : मोर (Saturn’s Vehicle – Peacock)
शनि का वाहन मोर व्यक्ति को शुभ फल देता है- इस समय मे व्यक्ति को अपनी मेहनत के साथ&साथ भाग्य का साथ भी मिलता है- शनि की साढेसाती की अवधि मे व्यक्ति अपनी होशियारी व समझदारी से परेशानियों को कम करने मे सफल होता है- इस दौरान व्यक्ति मेहनत से अपनी आर्थिक स्थिति को भी सुधार पाता है-

शनि वाहन : हंस (Saturn’s Vehicle – Swan)
जिस व्यक्ति के लिए शनि का वाहन हँस होता है उनके लिए शनि की साढेसाती की अवधि बहुत शुभ होती है- इस मे व्यक्ति बुद्धिमानी व मेहनत से काम करके भाग्य का सहयोग पाने मे सफल होता है- यह वाहन व्यक्ति के आर्थिक लाभ व सुखो को बढाता है- शनि के सभी वाहनो मे इस वाहन को सबसे अधिक अच्छा कहा गया है-